मध्यायु योग in Kundli
मध्यायु योग (Mid-Life Yoga) एक विशेष योग है जो व्यक्ति के जीवन के मध्य भाग में महत्वपूर्ण प्रभाव डालता है। यह योग सामान्यतः जन्म कुंडली में विभिन्न ग्रहों की स्थिति और उनके संबंधों के आधार पर बनाया जाता है। यह योग विशेष रूप से उस अवधि को संदर्भित करता है जब व्यक्ति का जीवन में एक स्थिरता और सफलतापूर्वक अपने लक्ष्यों की प्राप्ति का अवसर होता है।
मध्यायु योग के कुछ प्रमुख तत्व:
आज के जमाने में हर व्यक्ति अपने और अपने परिवार के भविष्य के बारे में जानना चाहता है. कुछ लोग अपनी आयु भी जानना चाहते हैं और इसके लिए वे ज्योतिषी का सहारा लेते हैं, लेकिन ज्योतिष शास्त्र में ऐसा माना गया है कि किसी भी व्यक्ति का भविष्य जानने से पहले उसकी आयु का पता लगना बहुत जरूरी होता है.
7वां और 10वां घर:
- मध्यायु योग को देखे जाने वाले मुख्य घरों में से एक 7वां और 10वां घर होता है। ये विवाह और करियर के घर माने जाते हैं, जो व्यक्ति के जीवन के स्थाई संबंध और पेशेवर जीवन को दर्शाते हैं।
- अल्पायु: जन्म से 33 साल तक
- मध्यआयु: 34 से 64 साल तक
- संपूर्णआयु: 65 से 100 साल तक
- दीर्घायु: 101 से 120 साल तक
- विपरीत आयु: 120 साल के बाद जितने साल जीवित रहे
ग्रहों की स्थिति:
- इस योग का निर्धारण करने के लिए कुंडली में ग्रहों की स्थिति और उनके प्रभाव को देखना आवश्यक है। कुछ ग्रहों का सहयोग और कुछ ग्रहों का विघटन इस योग की प्रगति पर प्रभाव डालते हैं।
- मिथुन व कन्या लग्न वालों की प्रायः मध्यम आयु होती है। यदि लग्नेश तथा अष्टमेश में से एक चर- मेष, कर्क, तुला, मकर तथा दूसरा स्थिर- वृषभ, सिंह, वृश्चिक, कुंभ राशि में हो तो जातक मध्यायु होता है।
- यदि शनि और चंद्र दोनों की द्विस्वभाव राशि में हों या एक चर तथा दूसरा स्थिर राशि में हो तो जातक मध्यायु होता है। यदि लग्नेश तथा अष्टमेश सामान्य स्थानों में हो तो जातक मध्यायु होता है। कई विद्वानों का यह मत भी है कि मध्यायु योग वाले जातकों की मृत्यु जन्म स्थान से बहुत दूर होती है।
दशा और अंतरदशा:
- जीवन की मध्यावस्था में ग्रहों की दशा और अंतरदशा का भी विशेष महत्व होता है। ये व्यक्तित्व पर प्रभाव डालती हैं और व्यक्ति की सफलता और संतोष को निर्धारित करती हैं। कुंडली में शनि की स्तिथि आयु तय करती है. ज्योतिष शास्त्र में जन्म कुंडली का विशेष स्थान माना जाता है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जन्म कुंडली में आयु का विचार आठवें भाव से किया जाता है. इसके अलावा तीसरा और 10वां स्थान भी आयु के स्थान माने गए हैं. इसलिए किसी भी विद्वान ज्योतिषी को आयु निर्धारण करने के लिए 3, 8 और 10वें स्थान पर विचार करना चाहिए. ज्योतिष शास्त्र में यह भी माना गया है कि आयु का कारक ग्रह शनि है.
अत्यंत सरल सूत्र मै बताने जा रहा हूं:
१.जन्म कुंडली में सूर्य अगर लग्नेश का मित्र है तो जातक दीर्घायु होता है।
२.जन्म कुंडली में सूर्य अगर लग्नेश से सम भाव रखता हो तो जातक मध्यायु होता है।
३.जन्म कुंडली में सूर्य अगर लग्नेश का शत्रु हो तो जातक अल्पायु होता है।
साधना और सर्वेक्षण:
- यदि कुंडली में मध्यायु योग दर्शाया गया है, तो यह व्यक्ति को साधना और आत्म-विश्वास के जरिए अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद कर सकता है।
मध्यायु योग का महत्व:
सफलता और संतोष:
- यह योग व्यक्ति को अपने प्रयासों का फल प्राप्त करने की दिशा में सहायता करता है, जिससे व्यक्ति अपनी जिंदगी में संतोष और सफलता को प्राप्त कर सकता है।
सकारात्मकता और आत्म-विश्लेषण:
- मध्यायु योग व्यक्ति में आत्म-विश्लेषण की भावना जगाता है, जिससे व्यक्ति अपनी गलतियों को समझ सकता है और भविष्य में उन्हें सुधार सकता है।
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उपाय और सुझाव:
समय का सदुपयोग:
- मध्यायु योग शुभ अवसरों का संकेत होता है, इसलिए इसे सही ढंग से प्रयोग में लाना चाहिए।
ज्योतिषीय सलाह:
- व्यक्ति को ज्योतिषीय सलाह लेना चाहिए ताकि मध्यayu योग से संबंधित उपायों और रणनीतियों को अपनाया जा सके।
आखिरकार, अगर आप अपनी कुंडली में मध्यायु योग के बारे में अधिक जानकारी चाहते हैं, तो एक योग्य ज्योतिषी से परामर्श करना सबसे अच्छा रहेगा। वे आपकी कुंडली का विश्लेषण करके आपको सचेत और व्यक्तिगत सुझाव देंगे।