कई लोग आरूढ़ लग्न को केवल जैमिनी ज्योतिष का हिस्सा मानते हैं, जबकि महर्षि पाराशर ने भी इसकी व्याख्या की है। महर्षि जैमिनी ने आरूढ़ लग्न की विस्तृत विवेचना करते हुए इसे एक प्रभावशाली ज्योतिष पद्धति के रूप में विकसित किया।
सबसे पहले, समझते हैं कि आरूढ़ लग्न का सिद्धांत क्या है। इसे स्पष्ट करने के लिए हम दर्पण में बनने वाले प्रतिबिंब के सिद्धांत का उदाहरण ले सकते हैं। दर्पण में किसी वस्तु का प्रतिबिंब उस वस्तु से जितनी दूरी पर होता है, उतनी ही दूरी पर उसका प्रतिबिंब दर्पण के पीछे बनता है। आरूढ़ का सिद्धांत भी कुछ ऐसा ही है।
किसी भाव का स्वामी उस भाव से जितनी दूर स्थित होता है, उतनी ही दूरी पर आगे जाकर उस भाव का आरूढ़ प्राप्त होता है। उदाहरण के लिए, यदि किसी भाव का स्वामी चार या दस स्थान आगे है, तो उस भाव का आरूढ़ उसी स्थान पर होगा। यदि स्वामी अपने भाव में या सप्तम भाव में स्थित हो, तो उस भाव का आरूढ़ दशम स्थान पर होगा।
आरूढ़ की आवश्यकता
आरूढ़ लग्न हमें इस बात का ज्ञान देता है कि व्यक्ति की समाज में कैसी छवि बन रही है। हमारे वास्तविक स्वरूप और समाज में हमारी छवि के बीच का अंतर ही आरूढ़ लग्न के माध्यम से समझा जा सकता है। इसे समझने के लिए हम उदाहरण ले सकते हैं कि कोई नया व्यक्ति कॉलोनी में रहने आता है। कॉलोनी के लोग उसके वास्तविक स्वभाव से अंजान होते हैं, लेकिन धीरे-धीरे उसके बारे में एक छवि बना लेते हैं। वह छवि आरूढ़ लग्न का संकेत है, जबकि उस व्यक्ति का वास्तविक स्वभाव उसका लग्न होता है।
भौतिक जीवन में होने वाले परिणामों का सही ढंग से आकलन करने के लिए आरूढ़ का अध्ययन आवश्यक है। यह व्यक्ति की सामाजिक छवि, प्रमोशन का समय, सफलता का स्तर, आदि के बारे में सटीक जानकारी प्रदान करता है। उदाहरण के लिए, कोई व्यक्ति चाहे छोटा वाहन (जैसे साइकिल) के साथ भी संतुष्ट हो सकता है, लेकिन उसका आरूढ़ बड़ी गाड़ी का सुख बताता है।
उपपद लग्न (UL)
उपपद लग्न व्यक्ति के वैवाहिक जीवन और जीवनसाथी की स्थिति का निर्धारण करता है। यदि उपपद लग्न में बुध हो, तो जीवनसाथी आकर्षक, बातूनी और बुद्धिमान होगा। वहीं, चंद्रमा की उपस्थिति से जीवनसाथी उम्र में छोटा हो सकता है, और राहु से अन्य जाति का व्यक्ति होने का संकेत मिलता है। शनि की उपस्थिति जीवनसाथी को अधिक उम्र का दर्शाती है।
A7 और UL का महत्व
सप्तम भाव के आरूढ़ को A7 कहा जाता है, जो यह दर्शाता है कि व्यक्ति किस प्रकार के लोगों की ओर आकर्षित होता है। अगर A7 और UL एक ही भाव में हों, या उनके स्वामी एक साथ हों, तो यह प्रेम विवाह का संकेत देता है।
UL में किसी ग्रह का उच्च में होना जीवनसाथी की सफलता का संकेत देता है, जबकि नीच ग्रह वैवाहिक जीवन में संघर्ष का सूचक हो सकता है। उपपद लग्न पर गुरु की उपस्थिति समृद्धि का संकेत देती है, जबकि शनि और राहु के संयोजन से विवाह में बाधा का योग बन सकता है। केतु का UL में होना, विवाह में देरी का संकेत देता है और कभी-कभी विवाह न होने का भी।
आरूढ़ सभी भावों का होता है ।
अब लग्न के आरूढ़ को आरूढ़ लग्न कहते हैं जबकि अन्य सभी भावों के आरूढ़ आरूढ़ पद कहलायेंगे । 12 वें भाव के आरूढ़ को भी अलग नाम UL कहा जायेगा ऐसा नियम है । अब समझें मान लीजिए कर्क लग्न की कुंडली है और चंद्र 6वें भाव में स्थित है तो भाव (1 ) के स्वामी की भाव से दूरी हुई 6 (लग्नेश 6 भाव में है) । अब भाव स्वामी जहाँ स्थित है (चंद्र) वहां से उतने ही(6) भाव गिनने पर भाव मिला 11 तो इस कुंडली का आरूढ़ लग्न 11 वें भाव में होगा । इसी प्रकार सभी भावों के आरूढ़ पद प्राप्त करते हैं
उप पद लग्न (UL) में बैठे और उस पर दृष्टि दे रहे ग्रह वैवाहिक जीवन और जीवन साथी की परिस्थिति निर्धारित करते है ,
वंहा बुध (mercury) का होना जीवन साथी को आकर्षक (attractive) , लगभग समान आयु का (same age), वाक पटु (talkative) और बुद्दिमान (intelligent) होना दर्शाता है, वंही चंद्र का होना उम्र से छोटा और राहु का होना अन्य जाती से होना दर्शाता है। वँहा शनि की उपस्थिति से अंदाज लगाया जा सकता है की जीवन साथी सामान्य से अधिक आयु का होगा ।
UL में किसी ग्रह का उच्च की राशि में बैठना जीवन साथी का सफल और प्रसिद्ध होना समझा जा सकता है, ठीक वैसे ही वँहा नीच का ग्रह वैवाहिक जीवन को दूषित होने का इशारा करता है।
उपपद लग्न भारतीय ज्योतिष में एक महत्वपूर्ण सूचक है, जो वैवाहिक जीवन के विभिन्न पहलुओं के बारे में बहुमूल्य जानकारी प्रदान करता है।यह न केवल विवाह के भीतर खुशी, जीविका और दीर्घायु की संभावना को दर्शाता है, बल्कि उन संदर्भों में एकाधिक विवाहों की गतिशीलता पर भी प्रकाश डालता है जहां बहुविवाह स्वीकार्य है।इसके अलावा, यह विवाह से होने वाले बच्चों की संभावनाओं और जीवनसाथी की विशेषताओं और सार्वजनिक छवि के बारे में भी जानकारी देता है। इसके अतिरिक्त, उपपद लग्न जीवन साथी के स्वास्थ्य और समग्र कल्याण का आकलन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।इन आयामों को समझकर, व्यक्ति अपने वैवाहिक संबंधों और उन्हें आकार देने वाले प्रभावों की गहरी समझ प्राप्त कर सकते हैं, जो अंततः उन्हें अधिक संतुष्टिदायक और सामंजस्यपूर्ण साझेदारी की ओर ले जाएगा।