सातवां घर और विवाह
ज्योतिष के मुताबिक, कुंडली का सातवां भाव विवाह, जीवनसाथी, और रिश्तों से जुड़ा होता है. इस भाव को जीवनसाथी भाव भी कहा जाता है. इस भाव में ग्रहों की स्थिति से जीवनसाथी के बारे में जानकारी मिलती है. साथ ही, इस भाव से विवाह से जुड़ी कई और बातें भी पता चलती हैं, जैसे कि: विवाह का समय, प्रेम विवाह या बहुविवाह, जातक या जातिका का प्रकृति को विस्तार देने में कितना योगदान रहेगा, पत्नी या पति का स्वभाव:
सूर्य
स्त्रीभिःगतः परिभवः मदगे पतंगे
(आचार्य वराहमिहिर)
(आचार्य वराहमिहिर)
जिसके जन्म समय में लग्न से सप्तम में सूर्य स्थित हो तो इसमें स्त्रियों का तिरस्कार प्राप्त होता है| सूर्य की सप्तम भाव में स्थिति सर्वाधिक वैवाहिक जीवन एवं चरित्र को प्रभावित करता है| सूर्य अग्निप्रद ग्रह होता है|जिसके कारण जातक के विवेक तथा वासना पर कोई नियंत्रण नहीं रह जाता है|
चन्द्रमा
सौम्यो ध्रिश्यः सुखितः सुशरीररः कामसंयुतोद्दूने
दैन्यरुगादित देहः कृष्णे संजायते शशिनि
दैन्यरुगादित देहः कृष्णे संजायते शशिनि
– (चमत्कार चिन्तामणि)
सप्तम भाव मे चन्द्रमा हो तो मनुष्य नम्र विनय से वश में आने वाला सुखी सुन्दर और कामुक होता है और चन्द्र यदि हीन वाली हो तो मनुष्य दीन और रोगी होता है| For Consultations
भौम
स्त्रियाँ दारमरणं नीचसेवनं नीच स्त्री संगमः
कुजेतिसुस्तनी कठिनोर्ध्व कुचा
कुजेतिसुस्तनी कठिनोर्ध्व कुचा
– (पाराशर)
सप्त्मस्थ मंगल की स्थिति प्रायः आचार्यों ने कष्ट कर बताया सप्तम भाव में भौम होने से पत्नी की मृत्यु होती है| नीच स्त्रियों से कामानल शांत करता है| स्त्री के स्तन उन्नत और कठिन होते हैं| जातक शारीरिक दृष्टि से प्रायः क्षीण, रुग्ण, शत्रुवों से आक्रांत तथा चिंताओं में लीं रहता है|
बुध
बुधे दारागारं गतवति यदा यस्य जनने
त्वश्यं शैथिल्यं कुसुमशररगोत्सविधौ
मृगाक्षिणां भर्तुः प्रभवति यदार्केणरहिते
तदा कांतिश्चंचत् कनकस द्रिशीमोहजननी
त्वश्यं शैथिल्यं कुसुमशररगोत्सविधौ
मृगाक्षिणां भर्तुः प्रभवति यदार्केणरहिते
तदा कांतिश्चंचत् कनकस द्रिशीमोहजननी
– (जातक परिजात)
जिस मनुष्य के जन्म समय मे बुध सप्तम भाव मे हो वह सम्भोग में अवश्य शिथिल होता है| उसका वीर्य निर्बल होता है| वह अत्यन्त सुन्दर और मृगनैनी स्त्री का स्वामी होता है यदि बुध अकेला हो तो मन को मोहित करने वाली सुवर्ण के समान देदीप्यमान कान्ति होती है|
जीव
शास्त्राभ्यासीनम्र चितो विनीतः कान्तान्वितात्यंतसंजात सौष्ठयः
मन्त्री मर्त्यः काव्यकर्ता प्रसूतो जायाभावे देवदेवाधिदेवः
मन्त्री मर्त्यः काव्यकर्ता प्रसूतो जायाभावे देवदेवाधिदेवः
जिस जातक के जन्म समय में जीव सप्तम भाव में स्थित हो वह स्वभाव से नम्र होता है| अत्यन्त लोकप्रिय और चुम्बकीय व्यक्ति का स्वामी होता है उसकी भार्या सत्य अर्थों में अर्धांगिनी सिद्ध होती है तथा विदुषी होती है| इसे स्त्री और धन का सुख मिलता है| यह अच्छा सलाहकार और काव्य रचना कुशल होता है|
शुक्र
भवेत किन्नरः किन्नराणां च मध्ये
स्वयं कामिनी वै विदेशे रतिः स्यात्
यदा शुक्रनामा गतः शुक्रभूमौ
स्वयं कामिनी वै विदेशे रतिः स्यात्
यदा शुक्रनामा गतः शुक्रभूमौ
(चमत्कार चिंतामणि)
जिस जातक के जन्म समय में शुक्र सप्तम भाव हो उसकी स्त्री गोरे रंग की श्रेष्ठ होती है| जातक को स्त्री सुखा मिलता है गान विद्द्या में निपुण होता है, वाहनों से युक्त कामुक एवं परस्त्रियों में आसक्त होता है विवाह का कारक ग्रह शुक्र है| सिद्धांत के तहत कारक ग्रह कारक भाव के अंतर्गत हो तो स्थिति को सामान्य नहीं रहने देता है इसलिए सप्तम भाव में शुक्र दाम्पत्य जीवन में कुछ अनियमितता उत्पन्न करता है ऐसे जातक का विवाह प्रायः चर्चा का विषय बनता है|
शनि
शरीरदोषकरः कृशकलत्रः वेश्या संभोगवान् अति दुःखी
उच्चस्वक्षेत्रगते अनेकस्त्रीसंभोगी कुजयुतेशिश्न चुंवन परः
उच्चस्वक्षेत्रगते अनेकस्त्रीसंभोगी कुजयुतेशिश्न चुंवन परः
– (भृगु संहिता)
सप्तम भाव में शनि का निवास किसी प्रकार से शुभ या सुखद नहीं कहा जा सकता है| सप्तम भाव में शनि होने से जातक का शरीर दोष युक्त रहता है| (दोष का तात्पर्य रोग से है) उसकी पत्नी क्रिश होती है जातक वेश्यागामी एवं दुखी होता है| यदि शनि उच्च गृही या स्वगृही हो तो जातक अनेक स्त्री का उपभोग करता है यदि शनि भौम से युक्त हो तो स्त्री अत्यन्त कामुक होती है उसका विवाह अधिक उम्र वाली स्त्री के साथ होता है|
राहु
प्रवासात् पीडनं चैवस्त्रीकष्टं पवनोत्थरुक्
कटि वस्तिश्च जानुभ्यां सैहिकेये च सप्तमे
कटि वस्तिश्च जानुभ्यां सैहिकेये च सप्तमे
– (भृगु सूत्र)
जिस जातक के जन्म समय मे राहु सप्तम भावगत हो तो उसके दो विवाह होते हैं| पहली स्त्री की मृत्यु होती है दूसरी स्त्री को गुल्म रोग, प्रदर रोग इत्यादि होते हैं| एवं जातक क्रोधी, दूसरों का नुकसान करने वाला, व्यभिचारी स्त्री से सम्बन्ध रखने वाला गर्बीला और असंतुष्ट होता है|
केतु
द्दूने च केतौ सुखं नैव मानलाभो वतादिरोगः
न मानं प्रभूणां कृपा विकृता च भयं वैरीवर्गात् भवेत् मानवानाम्
न मानं प्रभूणां कृपा विकृता च भयं वैरीवर्गात् भवेत् मानवानाम्
– (भाव कौतुहल)
यदि सप्तम भाव में केतु हो तो जातक का अपमान होता है| स्त्री सुख नहीं मिलता स्त्री पुत्र आदि का क्लेश होता है| खर्च की वृद्धि होती है रजा की अकृपा शत्रुओं का डर एवं जल भय बना रहता है| वह जातक व्यभिचारी स्त्रियों में रति करता है|
Conclusions:
ज्योतिष में सातवें घर को साझेदारी का घर माना जाता है, विवाह इन सभी में सबसे महत्वपूर्ण है। इसे विवाह का भाव भी कहा जाता है। इससे पहले के सभी पिछले भावों में स्वयं और व्यक्तिगत पर अधिक ध्यान केंद्रित किया गया था, और अब ध्यान स्वयं से दूसरों तक तथा साझेदारी में बदल जाता है यानी की भागीदारी में। इस भाव में शादी विवाह से जुड़ी हर चीज़ का राज समाहित होता है। विपरीत लिंग के प्रति आपका आकर्षण, एक साथी की इच्छा, यौन कल्पनाएं, प्रतिबद्धता, जुनून, संपत्ति, और समझने का स्तर आपकी कुंडली के सप्तम भाव में ग्रहों की स्थिति से नियंत्रित होता है।