कलानिधि योग का निर्माण | Formation of Kalanidhi Yoga
कलानिधि योग -HIGHER EDUCATION YOGA
इस तरह अन्य कई शुभ योग शुक्र से बनते है जो विशेष तरह के लाभकारी योग होते हैं। योग कोई भी हो योग की शुद्धता होना जरूरी है तभी वह अच्छे से फलित होता है। जैसे योग बनाने वाले ग्रह और योग बनाने वाले ग्रहो के साथ जो भी ग्रह है वह भी अस्त या अशुभ न हो, अंशो में ग्रह बहुत प्रारंभिक या आखरी अंशो पर न हो, पीड़ित न हो, योग बनाने वाले ग्रह नवमांश कुंडली में नीच या बहुत ज्यादा पाप ग्रहो से पीड़ित न हो आदि। जातक पर महादशा-अन्तर्दशा अनुकूल और शुभ हो तब योग अच्छे से फलित होकर अपना पूरा प्रभाव दिखाते है। शुभ योग बनाने वाले ग्रहों के कमजोर होने पर उन्हें उपाय से बली करके शुभ योग के शुभ फलो को बढ़ाया जा सकता है।
- किसी कुंडली के द्वितीय या पंचम भाव में गुरु हो और शुक्र और बुध की दृष्टि हो.
- गुरु की स्थिति वृषभ, मिथुन, कन्या, या तुला राशि में हो और शुक्र और बुध की दृष्टि हो.
कालनिधि योग तब बनता है, यदि कुंडली में बृहस्पति दूसरे घर में बुध और शुक्र को देख रहा हो। इसके अलावा, यह योग तब भी बनता है जब बृहस्पति को शुक्र और बुध की राशि में स्थित हो।
- चर लग्न में नवमेश बृहस्पति से युक्त होने पर तथा पंचमेश के पंचमस्थ होने पर और प्रबल दशमेश के लाभ भाव में स्थित होने पर कलानिधि योग का निर्माण होता है.
- यदि कुण्डली में गुरु दूसरे या पंचम भाव में स्थित हो और शुक्र या बुध उसे देख रहा हो तब कलानिधि योग बनता है. इसके अतिरिक्त कुंडली में यदि गुरू, बुध या शुक्र की राशि में स्थित है तब भी कलानिधि योग बनता है.
- लग्न में यदि चर नवांश हो और नवमेश बृहस्पति के साथ लग्न में स्थित हो तथा पंचमेश पंचम में ही स्थित हो तथा दशमेश बली होकर लाभ स्थान में स्थित हों तो कलानिधि योग का फल प्राप्त होता है. इस योग में कहा जाता है कि आयु के 23वें वर्ष में सुख एवं समृद्धि की प्राप्ति होती है.
- कलानिधि के बारे में एक अन्य तथ्य यह है कि नवांश से संबंधित ग्रहों का उल्लेख नहीं होता क्योंकि नवांश संबंधित ग्रह योग काफी किलष्ट होते हैं. दूसरे भाव में गुरू को बुध और शुक्र से अवश्य संयुक्त होना चाहिए. अथवा पंचम भाव में शुक्र और बुध गुरू की राशि धनु या मीन में स्थित हों तो कलानिधि योग की सरंचना होती है.
यह योग गुरु,शुक्र व बुध के संयुक्त प्रभाव से बनता है। गुरु यदि दूसरे या पांचवें स्थान पर शुक्र-बुध के साथ स्थित हो या इनके दृष्टी प्रभाव में हो तो कलानिधि योग बनता हैं। इसके अतिरिक्त यह योग तब भी फल देता हैं जब गुरु,शुक्र व बुध एक साथ लग्न, नवम या सप्तम स्थान पर स्थित हो।
इस योग को सरस्वती योग के नाम से भी जाना जाता हैं। कला निधि योग इंसान को सच्ची सफलता प्रदान करता हैं। इस योग के प्रभाव से व्यक्ति अनेक क्षमताओं से युक्त होता है। विभिन्न प्रकार का ज्ञान उसकी बुद्धि क्षमता को प्रदर्शित करता है। ऐसे जातक ज्ञानी, दानी, राजाओं द्वारा सम्मानित, विभिन्न प्रकार के सुखों को भोगने वाला तथा कलाओं की खान होता हैं।
कलानिधि योग वाला व्यक्ति समाज में सम्मान प्राप्त करता है और सरकार द्वारा सम्मानित किया जाता है। ऐसा व्यक्ति जीवन में वाहन और अन्य भौतिकवादी चीजों का आनंद लेता है।
वह बुद्धिमान, धनवान और सकारात्मक गुणों से संपूर्ण होता है।
यदि कोई व्यक्ति इस योग में पैदा होता है, तो उसे आमतौर पर सरकार द्वारा सम्मानित या सम्मानित किया जा सकता है।
वह समाज के उच्च वर्ग से ताल्लुक रखता है और सभी तरह की बीमारियों से दूर रहता है।
उसे अपने व्यवसाय में सफलता मिलती है और उसे भाग्य का भरपूर साथ मिलता है।
इस योग का खास बात यह है कि यह सम और विषम दोनों ही परिस्थितियों में निरंतर शुभ फल ही प्रदान करता है।
Conclusions:-
कला निधि योग में जन्में जातक भले ही किसी भी पृष्ठभूमि से हो लेकिन असीमीत सफलता प्राप्त करते हैं। इन्हे किसी की दया या पैतृक सम्पदा प्राप्त नही होती अपितु सारा कुछ इनकी मेहनत के बल पर प्राप्त होता हैं।