वर्षफल और ताजिक योग | Varshaphal and Tajik Yoga
इकबाल योग | Ikbal Yoga
इकबाल योग का अर्थ प्रतिष्ठा, सम्मान से होता है. वर्ष कुण्डली में यदि सभी ग्रह केन्द्र भाव अर्थात 1,4,7,10 में या पणफर (STHIR RASHI) अर्थात 2,5,8,11 में स्थित हों तो इकबाल योग क अनिर्माण होता है. यह एक अच्छा तथा शुभ योग है कुण्डली में यह योग शुभता एवं कार्यसिद्धि का सूचक बनता है.
इन्दुवार योग | Induvar Yoga
इंदुवार यो भाग्य में कमी को दर्शाता है. यदि वर्ष कुण्डली में सारे ग्रह अपोक्लिम अर्थात 3,6,9,12 भावों में हो तब इन्दुवार योग बनता है. इस भावों बैठे ग्रह क्षीणता युक्त होते हैं.
दुरुफ योग | Duruph Yoga
कुण्डली में यदि लग्नेश तथा कार्येश 6,8,12 भावों में निर्बल अवस्था में स्थित हों तथा पाप ग्रहों से दृष्ट हों तब दुरुफ योग बनता है. यह अच्छा योग नहीं होता.
इत्थशाल योग | Ithashal Yoga
लग्नेश तथा कार्येश में दृष्टि संबंध हो. लग्नेश तथा कार्येश दीप्ताँशों में हो. इत्थशाल होने के लिए दो ग्रहों का आपस में संबंध होता है. मंदगामी ग्रह के अंश अधिक हों तथा तीव्रगामी ग्रह के अंश कम हों. उपरोक्त शर्ते यदि पूरी हो रही हों तो इत्थशाल योग बनता है. यह योग भविष्य में होने वाला संबंध दिखाता है. भविष्य में कार्य सिद्धि के योग बनते हैं.
इशराफ योग | Ishraf Yoga
कुछ विद्वान इसे मुशरिफ योग भी कहते हैं. यह योग इत्थशाल योग के ठीक विपरीत होता है. परस्पर दो ग्रहों में दृ्ष्टि हो, परन्तु शीघ्रगामी ग्रह के अधिक अंश हों तथा मंदगामी ग्रह के अंश कम हों. इस प्रकार शीघ्रगामी ग्रह आगे ही बढ़ता रहेगा और कार्य हानि होगी. मंदगामी ग्रह, तीव्रगामी ग्रह से एक अंश से अधिक पीछे हो तो इशराफ होगा.
कुत्थ योग | Kutha Yoga
लग्नेश, कार्येश कुण्डली में बली हों. शुभ ग्रहों से दृष्ट हों, शुभ भावों में हों तथा शुभ संबंध में हों तो शुभ है. कार्य की सिद्धि हो सकती है.
दुफलि कुत्थ योग | Dufali Kutha Yoga
कुण्डली में मंदगामी ग्रह बली हो. तीव्रगामी ग्रह निर्बल हो तो दुफलि कुत्थ योग बनता है. इस योग के बनने पर कार्य सिद्धि की संभावना अच्छी रहती है.
मणऊ योग | Manau Yoga
इत्थशाल में शामिल ग्रहों से मंगल तथा शनि का संबंध भी बन रहा हो तो मणऊ योग बनता है. इसमें कार्य की हानि हो होती है. कार्य नहीं बनता.
रद्द योग | Radd Yoga
वर्ष कुण्डली में यदि मंदगामी ग्रह निर्बल हो तथा तीव्रगामी ग्रह बली हो तब रद्द योग बनता है. इस योग के बनने से कार्य हानि होती है.
कम्बूल योग | Kambool Yoga
वर्ष कुण्डली में लग्नेश तथा कार्येश का परस्पर इत्थशाल हो रहा हो. दोनों ग्रहों में से किसी एक ग्रह के साथ चन्द्रमा का इत्थशाल हो रहा हो तब कम्बूल योग बनता है. इस योग के बनने पर कार्यसिद्धि होती है.
गैरी कम्बूल योग | Gairi Kambool Yoga
कुण्डली में लग्नेश तथा कार्येश का इत्थशाल, शून्यमार्गी चन्द्रमा से हो रहा हो और चन्द्रमा राशि अंत में भी स्थित हो तब यह गैरी कम्बूल योग बनता है. इस योग में कार्य सिद्धि विलम्ब से होती है.
खल्लासर योग | Khallasar Yoga
लग्नेश तथा कार्येश का संबंध होने से इत्थशाल है लेकिन शून्यमार्गी चन्द्रमा से कोई संबंध नहीं है तो यह खल्लासर योग बनता है. इस योग में कार्य सिद्धि नहीं होती है.
ताम्बीर योग | Tambeer Yoga
जब कुण्डली में लग्नेश तथा कार्येश का इत्थशाल नहीं होता है. एक राशि अंत में होता है और दूसरा ग्रह अगली राशि में आने पर किसी अन्य बली ग्रह से इत्थशाल करे तब यह ताम्बीर योग बनता है. इस योग में किसी अन्य की सहायता से कार्य की सिद्धि होती है.
नक्त योग | Nakta Yoga
कुण्डली में लग्नेश तथा कार्येश में इत्थशाल नहीं है लेकिन कोई अन्य तीसरा तीव्रगामी ग्रह दोनों से इत्थशाल करता है तो नक्त योग बनता है. इस योग में किसी मध्यस्थ की सहायता से बात बन सकती है अर्थात कार्य सिद्धि हो सकती है.
यमया योग | Yamya Yoga
कुण्डली में लग्नेश तथा कार्येश में इत्थशाल नहीं है लेकिन किसी अन्य मंदगामी ग्रह से दोनों का इत्थशाल हो तो यमया योग बनता है. इस योग में किसी बडे़-बुजुर्ग की सहायता लेकर व्यक्ति कार्य बना सकता है. किसी को मध्यस्थ बनाकर कार्य को सफल बनाया जा सकता है.