Shani Stotra: शनिवार को करना है शनि देव को प्रसन्न, तो करें यह एक काम
नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम:।1
नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च।
नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते। 2
नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम:।
नमस्ते कोटराक्षाय दुर्नरीक्ष्याय वै नम:।
नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने। 4
नमस्ते सर्वभक्षाय बलीमुख नमोऽस्तु ते।
सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करेऽभयदाय च। 5
अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तु ते।
नमो मन्दगते तुभ्यं निस्त्रिंशाय नमोऽस्तुते। 6
तपसा दग्ध-देहाय नित्यं योगरताय च।
नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम:। 7
ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज-सूनवे।
तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात्। 8
देवासुरमनुष्याश्च सिद्ध-विद्याधरोरगा:।
त्वया विलोकिता: सर्वे नाशं यान्ति समूलत:। 9
प्रसाद कुरु मे सौरे ! वारदो भव भास्करे।
स्तोत्र का अर्थ
प्रसन्न हुए शनि
राजा दशरथ के इस प्रकार प्रार्थना करने से शनि देव अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्होंने कहा की उत्तम व्रत का पालन करने वाले राजा दशरथ, तुम्हारी इस स्तुति से मैं भी अत्यन्त सन्तुष्ट हुआ हूं। इसलिए हे रघुनन्दन तुम इच्छानुसार वर मांगो, मैं अवश्य दूंगा। इस पर राजा दशरथ ने कहा कि हे ‘प्रभु यदि आप प्रसन्न हैं तो आज से आप देवता, असुर, मनुष्य, पशु, पक्षी तथा नाग-किसी भी प्राणी को पीड़ा न दें। बस यही मेरा प्रिय वरदान है।
राजा की इस विनम्रता से स्तब्ध और अति प्रसन्न शनि देव ने कहा कि वैसे इस प्रकार का वरदान वे किसी को नहीं देते हैं, परन्तु सन्तुष्ट होने के कारण उन्हें दे रहे हैं।
शनि का वचन और स्त्रोत का लाभ
इसके बाद शनि देव ने वरदान स्वरूप राजा दशरथ को वचन दिया कि इस स्तोत्र को जो भी मनुष्य, देव अथवा असुर, सिद्ध तथा विद्वान आदि पढ़ेंगा, उसे शनि के कारण कोई बाधा नहीं होगी। जिनकी महादशा या अन्तर्दशा में, गोचर में अथवा लग्न स्थान, द्वितीय, चतुर्थ, अष्टम या द्वादश स्थान में शनि हो वे व्यक्ति यदि पवित्र होकर दिन में तीन बार प्रातः, मध्याह्न और सायंकाल के समय इस स्तोत्र को ध्यान देकर पढ़ेंगे, उनको निश्चित रुप से शनि पीड़ित नहीं करेगा।
शनि स्तोत्र पाठ की विधि
सुबह स्नान के बाद किसी शनि मंदिर में जाकर शनि देव की पूजा अर्चना करें. उसके बाद मंदिर में एक आसान पर बैठकर पूरे मन से शनि स्तोत्र का पाठ प्रारंभ करें. शनि देव की तस्वीर या मूर्ति घर में नहीं रखते हैं, इसलिए आप मंदिर में जाकर पूजा करें. शनि स्तोत्र के बाद शनि देव की आरती विधिपूर्वक करें. शनि स्तोत्र का पाठ करने के पश्चात कर्मफलदाता से अपनी मनोकामना व्यक्त करें.इस बात का ध्यान रखें कि शनि देव की आंखों से आपकी आंखें न मिलें, शनि देव की दृष्टि जिस पर पड़ती है, उसकी बुरी दशा शुरु हो जाती है. इस वजह से शनि देव की आंखें नहीं देखते हैं.
Conclusions:-
शनि ग्रह न्याय के कारक हैं और सभी को अपने वर्तमान व पूर्व जन्मों के कर्मों के अनुसार फल देते हैं. अच्छे कर्म करनेवालों को जहां सुख मिलता है वहीं बुरे कर्म करनेवालों को शनि दंडित करते हैं. शनि की साढ़ेसाती, शनि ढैया या शनि की महादशा, अंतरदशा में शनि जनित कष्ट सभी को कमोबेश होते ही हैं.