ग्रह मैत्री पांचवां कूट है तथा इसके लिए पांच गुण अंक निर्धारित हैं। इसका विशेष महत्व इसलिए भी है क्योंकि ग्रह मैत्री होने पर अन्य अनेक कूटों के दोषों का परिहार हो जाता है।
सात महत्वपूर्ण ग्रह हैं जिनके नाम से हमारे सप्ताह के सात दिनों को जाना जाता है। ये ग्रह हैं - सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र तथा शनि। समस्त कैलेंडर या काल गणणा इन्हीं के आधार पर किया जाता है। बारहों राशियां तथा सभी सताईस नक्षत्र इन्हीं ग्रहों के आधिपत्य में माने जाते हैं।
केवल सूर्य तथा चन्द्र एक-एक राशियों के स्वामी हैं जबकि अन्य सभी दो-दो राशियों के।
सूर्य स्वामी है सिंह राशि का
चन्द्र स्वामी है कर्क राशि का
मंगल स्वामी है मेष तथा वृश्चिक का
बुध स्वामी है मिथुन तथा कन्या का
गुरु स्वामी है धन तथा मीन का
शुक्र स्वामी है वृष तथा तुला का
शनि स्वामी है मकर तथा कुंभ का
हम वैदिक ज्योतिष में ग्रहो की मित्रता तीन भागो मे रखा गया है। कुछ ग्रह एक दुसरे के मित्र है कुछ तटस्थ कुछ शत्रु । जो इस प्रकार है
1) सूर्य
मित्र ग्रह – सूर्य, चंद्रमा ,मंगल , बृहस्पति
तटस्थ — बुध
शत्रु — शुक्र शनि
2)चंद्रमा
मित्र — सूर्य चंद्रमा बृहस्पति
तटस्थ – मंगल बुध शुक्र शनि
शत्रु — कोई नही
3) मंगल ग्रह
मित्र — सूर्य चंद्रमा मंगल बृहस्पति
तटस्थ — शुक्र शनि
शत्रु — बुध
4) बुध
मित्र — सूर्य शुक्र बुध
तटस्थ– मंगल बृहस्पति शनि
शत्रु — चंद्रमा
5) बृहस्पति
मित्र – सूर्य चंद्रमा मंगल बृहस्पति
तटस्थ – शनि
शत्रु — बुध शुक्र
6) शुक्र
मित्र — बुध शुक्र शनि
तटस्थ — मंगल बृहस्पति
शत्रु– सूर्य चंद्रमा
7) शनि
दोस्त – बुध शुक्र शनि
तटस्थ– बृहस्पति
शत्रु- सूर्य चंद्रमा मंगल ग्रह।
इन ग्रहों के बीच परस्पर नैसर्गिक मित्रता तथा शत्रुता के सम्बंध होते हैं। यदि ग्रहों के बीच सभी प्रकार के सम्बंधों को देखें तो हमें छह प्रकार के परस्पर सम्बंध देखने को मिलते हैं। ये हैं
1. अधिमित्र
2. मित्र
3. सम मित्र
4. सम
5. सम शत्रु या शत्रु, तथा
6. अधिशत्रु
पहले चार प्रकार के सम्बंध अच्छे माने जाते हैं तथा उसके बाद शेष दो सम्बंध बुरे।
वर-कन्या की राशियों के स्वामी यदि एक ही हों तो उसे एकाधिपत्य योग कहा जाता है। ऐसे विवाहों को सर्वोत्तम माना जाता है।
स्वामी ग्रहों के अधिशत्रु होने पर शून्य अंक दिये जाते हैं तथा ऐसे विवाह को वर्जित किया जाता है। कुछ विद्वानों का कहना है कि अन्य गुण मिलने पर भी यदि ग्रह मैत्री नहीं मिली तो विवाह वर्जित कर देना चाहिए। इसका परिहार होने पर ही विवाह करना चाहिए। सद्भकूट होने पर ग्रह मैत्री का दोष नहीं होता, यही इसका परिहार है।
ग्रह मैत्री विचार में देखना होता है कि वर-कन्या की ग्रह मैत्री बनती है या नहीं।
यदि राशि मैत्री नहीं बनती हो तो शून्य अंक दिया जायेगा। इस राशि मैत्री का दोष तभी बलहीन हो जाता है या तभी इसे नहीं माना जाता जब अन्य मैत्रियां मिलती हों। ये अन्य विचारणीय मैत्रियां सात हैं -
1. वर्ग मैत्री
2. राशि मैत्री
3. राश्यांश मैत्री
4. लग्न मैत्री
5. गण मैत्री
6. योनि मैत्री, तथा
7. तत्व मैत्री
ग्रह मैत्री की गणना करने के लिए गहों के सभी आपसी सम्बंधों को ध्यान में रखते हुए एक तालिका बनायी गयी है जिसे अधिकांश विद्वानों की मान्यता प्राप्त है। परन्तु विशेष स्थिति में विद्वानों से सम्पर्क कर अपनी जन्म कुंडली में ग्रहों की अवस्था के आधार पर गणना करवाना चाहिए। अधिकांश मामलों में यह तालिका ही मान्य है।
(वर की राशि के स्वामी ग्रह क्षैतिज तथा कन्या के उर्ध्वाधर दिये गये हैं)
ग्रह | सूर्य | चन्द्र | मंगल | बुध | गुरु | शुक्र | शनि |
सूर्य | 5 | 5 | 5 | 4 | 5 | 0 | 0 |
चन्द्र | 5 | 5 | 4 | 1 | 4 | ½ | ½ |
मंगल | 5 | 4 | 5 | ½ | 5 | 3 | ½ |
बुध | 4 | 1 | ½ | 5 | ½ | 5 | 4 |
गुरु | 5 | 4 | 5 | ½ | 5 | ½ | 3 |
शुक्र | 0 | ½ | 3 | 5 | ½ | 5 | 5 |
शनि | 0 | ½ | ½ | 4 | 3 | 5 | 5 |
व्यतिक्रम से अधिक प्रभावी मैत्रियां हैं - राश्यांश मैत्री, लग्न मैत्री, तत्व मैत्री तथा वर्ग मैत्री। यदि अधिकतम मित्र भाव मिलता हो तो राशि मैत्री नहीं होने पर भी ऐसा योग अधिक प्रभावी तथा श्रेष्ठ होता है। इसलिए गुण मिलान में ग्रह मैत्री गुण शून्य आने पर भी विवाह शुभद है।
ध्यान रहे की मैत्री सभी कूटों में प्रधान है क्योंकि मैत्री भाव से ही दाम्पत्य जीवन सुखी रहता है। यदि मैत्री भाव न रहे तो जोड़ी को मनमुटाव, एक दूसरे को त्यागना या अन्य प्रकार की समस्याएं देखने को मिलती हैं।
विवाहिक द्रष्टि से आठ प्रकार से परस्पर मिलान की किया जाता है जो कि 36 गुण या अंक का होता है जिसमे 5 अंक की भूमिका ग्रह मैत्री की होती है अर्थात आपसी तालमेल के लिए ग्रह मैत्री का विचार किया जाता है -
ग्रहो का मैत्री सम्बंध अर्थात नैसर्गिक मित्रता राशि स्वामीयो का किया जाता है एक ग्रह के मित्र ,सम , शत्रु ग्रहो का परस्पर संबंध इस प्रकार से रहता है ।
वर एवं कन्या के जन्म चन्द्रमा जिस राशि मे विद्यमान है उनके स्वामी को देखना होता है
■यदि दोनो राशि स्वामी दोनो ओर से मित्र है अथवा दोनो का स्वामी एक ही ग्रह है तो पूर्णाक 5 दिये जाते है ।
■ यदि एक दूसरे के प्रति एक मित्र है दूसरा सम है ( उदाहरणतः बुध और शनि ) तो 4 अंक देते हैं ।
■ दोनो राशि स्वामी एक दूसरे के लिए सम है तो 3अंक प्राप्त होगे ( उदाहरणतः बृहस्पति एवं शनि )
■ एक स्वामी दूसरे के प्रति मित्रता रखता है जबकि दूसरा शत्रुता तो 1 अंक देते है ( उदाहरणतः चन्द्रमा एवं बुध)
■ एक दूसरे का सम होता है जबकि दूसरा शत्रु तो 1/2 अंक देते है ।
■ अन्य स्थिति मे कोई भी अंक नही दिया जाता है ।