सावन गणेश संकष्टी चतुर्थी 2024 हिन्दू धर्म का एक प्रसिद्ध त्यौहार है. संकष्टी चतुर्थी का दिन भगवान गणेश को समर्पित है. गणेश जी बुद्धि, बल और विवेक का देवता का दर्जा प्राप्त है. भगवान गणेश अपने भक्तों की सभी परेशानियों और विघ्नों को हर लेते हैं, इसीलिए इन्हें विघ्नहर्ता और संकटमोचन भी कहा जाता है.
संकष्टी चतुर्थी का मतलब होता है संकट को हरने वाली चतुर्थी. संकष्टी संस्कृत भाषा से लिया गया एक शब्द है, जिसका अर्थ होता है ‘कठिन समय से मुक्ति पाना’. इस दिन व्यक्ति अपने दुःखों से छुटकारा पाने के लिए गणपति की अराधना करते हैं.
सावन का महीना भगवान शिव और गणेशजी की उपासना के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। इस महीने में सावन गणेश संकष्टी चतुर्थी 2024 का विशेष महत्व है, जो इस वर्ष जुलाई 2024 में अद्वितीय पूजन विधि और मुहूर्त के साथ आ रही है।
भगवान गणेश को समर्पित इस त्योहार में श्रद्धालु अपने जीवन की कठिनाईओं और बुरे समय से मुक्ति पाने के लिए उनकी पूजा-अर्चना और उपवास करते हैं. संकष्टी चतुर्थी को कई अलग-अलग नामों से भी जाना जाता है. कई जगहों पर इसे संकट हारा कहते हैं तो कहीं-कहीं सकट चौथ के नाम से जाना जाता है. यदि किसी महीने में यह पर्व मंगलवार के दिन पड़ता है तो इसे अंगारकी चतुर्थी कहा जाता है. अंगारकी चतुर्थी 6 महीनों में एक बार आती है और इस दिन व्रत करने से जातक को पूरे संकष्टी का लाभ मिल जाता है. दक्षिण भारत में लोग सावन गणेश संकष्टी चतुर्थी 2024 को बहुत उत्साह और उल्लास से मनाते हैं.
संकष्टी चतुर्थी 2024 की तिथि 25 जुलाई को पड़ रही है। इस दिन, भक्त भगवान गणेश की आराधना और व्रत करते हैं, ताकि वे अपने जीवन से सभी बाधाओं को दूर कर सकें। चतुर्थी की पूजा विधि में सुबह स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करना आवश्यक है। पूजा स्थल को स्वच्छ कर, गणेशजी की प्रतिमा स्थापित करें। गणेशजी को मोदक, दूर्वा और फूल अर्पित करें।
पूजा मुहूर्त - सुबह 05.38 - सुबह 09.03
गजानन संकष्टी चतुर्थी पूजा विधि
गणेश चतुर्थी वाले दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और सूर्य को अर्घ्य दें.
फिर पूजा चौकी पर भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित करें.
फिर उन्हें पीले फूलों की माला अर्पित करें और कुमकुम का तिलक लगाएं.
भगवान गणेश को दुर्वा घास जरूर अर्पित करना चाहिए. आरती करें.
व्रत का महत्व
सावन गणेश संकष्टी चतुर्थी 2024 व्रत का पालन करने से भगवान गणेशजी की कृपा प्राप्त होती है। इस व्रत के दौरान उपवास रखने से जीवन में सुख, समृद्धि और शांति का आगमन होता है। गणेशजी को विघ्नहर्ता माना जाता है और उनके व्रत से जीवन की सभी बाधाएं दूर होती हैं।
इस प्रकार, सावन गणेश संकष्टी चतुर्थी का व्रत और पूजन भक्तों के लिए शुभ फलदायी और मंगलकारी माना जाता है। इस दिन भगवान गणेश की उपासना से उनके आशीर्वाद और कृपा की प्राप्ति होती है।
एक समय की बात है कि विष्णु भगवान का विवाह लक्ष्मीजी के साथ निश्चित हो गया। विवाह की तैयारी होने लगी। सभी देवताओं को निमंत्रण भेजे गए, परंतु गणेशजी को निमंत्रण नहीं दिया, कारण जो भी रहा हो
अब भगवान विष्णु की बारात जाने का समय आ गया। सभी देवता अपनी पत्नियों के साथ विवाह समारोह में आए। उन सबने देखा कि गणेशजी कहीं दिखाई नहीं दे रहे हैं। तब वे आपस में चर्चा करने लगे कि क्या गणेशजी को न्योता नहीं गया है ? या स्वयं गणेशजी ही नहीं आए हैं? सभी को इस बात पर आश्चर्य होने लगा। तभी सबने विचार किया कि विष्णु भगवान से ही इसका कारण पूछा जाए|
विष्णु भगवान से पूछने पर उन्होंने कहा कि हमने गणेशजी के पिता भोलेनाथ महादेव को न्योता भेजा है। यदि गणेशजी अपने पिता के साथ आना चाहते तो आ जाते, अलग से न्योता देने की कोई आवश्यकता भी नहीं थीं। दूसरी बात यह है कि उनको सवा मन मूंग, सवा मन चावल, सवा मन घी और सवा मन लड्डू का भोजन दिनभर में चाहिए। यदि गणेशजी नहीं आएंगे तो कोई बात नहीं। दूसरे के घर जाकर इतना सारा खाना-पीना अच्छा भी नहीं लगता।
इतनी वार्ता कर ही रहे थे कि किसी एक ने सुझाव दिया- यदि गणेशजी आ भी जाएं तो उनको द्वारपाल बनाकर बैठा देंगे कि आप घर की याद रखना। आप तो चूहे पर बैठकर धीरे-धीरे चलोगे तो बारात से बहुत पीछे रह जाओगे। यह सुझाव भी सबको पसंद आ गया, तो विष्णु भगवान ने भी अपनी सहमति दे दी।
होना क्या था कि इतने में गणेशजी वहां आ पहुंचे और उन्हें समझा-बुझाकर घर की रखवाली करने बैठा दिया। बारात चल दी, तब नारदजी ने देखा कि गणेशजी तो दरवाजे पर ही बैठे हुए हैं, तो वे गणेशजी के पास गए और रुकने का कारण पूछा। गणेशजी कहने लगे कि विष्णु भगवान ने मेरा बहुत अपमान किया है। नारदजी ने कहा कि आप अपनी मूषक सेना को आगे भेज दें, तो वह रास्ता खोद देगी जिससे उनके वाहन धरती में धंस जाएंगे, तब आपको सम्मानपूर्वक बुलाना पड़ेगा।
अब तो गणेशजी ने अपनी मूषक सेना जल्दी से आगे भेज दी और सेना ने जमीन पोली कर दी। जब बारात वहां से निकली तो रथों के पहिए धरती में धंस गए। लाख कोशिश करें, परंतु पहिए नहीं निकले। सभी ने अपने-अपने उपाय किए, परंतु पहिए तो नहीं निकले, बल्कि जगह-जगह से टूट गए। किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्या किया जाए।
तब तो नारदजी ने कहा- आप लोगों ने गणेशजी का अपमान करके अच्छा नहीं किया। यदि उन्हें मनाकर लाया जाए तो आपका कार्य सिद्ध हो सकता है और यह संकट टल सकता है। शंकर भगवान ने अपने दूत नंदी को भेजा और वे गणेशजी को लेकर आए। गणेशजी का आदर-सम्मान के साथ पूजन किया, तब कहीं रथ के पहिए निकले। अब रथ के पहिए निकल को गए, परंतु वे टूट-फूट गए, तो उन्हें सुधारे कौन?
पास के खेत में खाती काम कर रहा था, उसे बुलाया गया। खाती अपना कार्य करने के पहले 'श्री गणेशाय नम:' कहकर गणेशजी की वंदना मन ही मन करने लगा। देखते ही देखते खाती ने सभी पहियों को ठीक कर दिया।
वह खाती कहने लगा कि हे देवताओं! आपने सर्वप्रथम गणेशजी को नहीं मनाया होगा और न ही उनकी पूजन की होगी इसीलिए तो आपके साथ यह संकट आया है। हम तो मूरख अज्ञानी हैं, फिर भी पहले गणेशजी को पूजते हैं, उनका ध्यान करते हैं। आप लोग तो देवतागण हैं, फिर भी आप गणेशजी को कैसे भूल गए? अब आप लोग भगवान श्री गणेशजी की जय बोलकर जाएं, तो आपके सब काम बन जाएंगे और कोई संकट भी नहीं आएगा।
ऐसा कहते हुए बारात वहां से चल दी और विष्णु भगवान का लक्ष्मीजी के साथ विवाह संपन्न कराके सभी सकुशल घर लौट आए। हे गणेशजी महाराज! आपने विष्णु को जैसो कारज सारियो, ऐसो कारज सबको सिद्ध करजो। बोलो गजानन भगवान की जय।