देवशयनी एकादशी व्रत, जानें पूजा का शुभ मुहूर्त कब से कब तक
आज का दिन विशेष महत्व रखता है, 17 जुलाई 2024, बुधवार को देवशयनी एकादशी का पवित्र व्रत मनाया जा रहा है। इस दिन भगवान विष्णु के शयनकाल का आरंभ होता है। सनातन धर्म में यह व्रत अद्वितीय स्थान रखता है, जहाँ भक्तगण भगवान विष्णु की पूजा कर अपने जीवन को पवित्र और पुण्य से भर देते हैं।
इस दिन का शुभारंभ ब्रह्म मुहूर्त से होगा, जो सुबह 4:12 बजे से 4:52 बजे तक रहेगा। अभिजीत मुहूर्त, जो किसी भी कार्य को आरंभ करने के लिए उत्तम होता है, दोपहर 11:58 बजे से 12:50 बजे तक रहेगा। राहुकाल, जो अशुभ माना जाता है, दोपहर 12:30 बजे से 2:00 बजे तक रहेगा, इस समय किसी भी शुभ कार्य से बचना चाहिए।
आज के व्रत त्योहार : देवशयनी\हरिशयनी एकादशी व्रत, चातुर्मास्य व्रत, श्री विष्णु शयनोत्सव।
सूर्योदय का समय 17 जुलाई 2024 : सुबह 5 बजकर 34 मिनट पर।
सूर्यास्त का समय 17 जुलाई 2024 : शाम में 7 बजकर 20 मिनट पर।
देवशयनी एकादशी की महिमा:
देवशयनी एकादशी को हरिशयनी एकादशी भी कहा जाता है। इस दिन भगवान विष्णु क्षीरसागर में योग निद्रा में चले जाते हैं और चार महीने बाद प्रबोधिनी एकादशी को जागते हैं। इस अवधि को चातुर्मास कहते हैं, जो तप, भक्ति और साधना के लिए उपयुक्त समय है।
देवशयनी एकादशी व्रत कथा
धर्मराज युधिष्ठिर ने पूछा- हे भगवन् । आषाढ़ के शुक्ल- पक्ष में कौन-सी एकादशी होती है? उसका नाम और विधि क्या है ? यह बताने की कृपा करें।
भगवान श्रीकृष्ण बोले- राजन ! आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम 'शयनी' है। मैं उसका वर्णन करता हूं। वह महान पुण्यमयी, स्वर्ग और मोक्ष प्रदान करने वाली, साथ ही सब पापों को हरने वाली एकादशी है। इसका व्रत करना अति उत्तम फल देने वाला होता है।
जिन्होंने आषाढ़ शुक्ल पक्ष में शयनी एकादशी के दिन जिन्होंने कमल-पुष्प से कमल लोचन भगवान विष्णु का पूजन और एकादशी का उत्तम व्रत किया है, उन्होंने तीनों लोकों और तीनों सनातन देवताओं का पूजन करने के समान फल प्राप्त होता है। हरिशयनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु राजा बलि के यहां रहते हैं और दूसरा क्षीरसागर में शेषनाग की शय्या पर तब तक शयन करता है, जब तक आगामी कार्तिक की एकादशी नहीं आ जाती; अतः आषाढ़ शुक्ल एकादशी से लेकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक मनुष्य को अच्छे से धर्म का आचरण करना चाहिए। जो मनुष्य इस व्रत का अनुष्ठान करता है, वह परम गति को प्राप्त होता है, इस कारण विधि पूर्वक और सच्ची निष्ठा के साथ इस एकादशी का व्रत करना चाहिए।
एकादशी की रात में जागरण करना चाहिए और शंख, चक्र और गदा धारण करने वाले भगवान विष्णु की भक्तिपूर्वक पूजा करनी चाहिए। ऐसा करने वाले पुरुष के पुण्य की गणना करने में चतुर्मुख ब्रह्माजी भी असमर्थ हैं। ऐसा करने से व्यक्ति के पुण्य कई ज्यादा गुणा बढ़ जाते हैं। राजन् ! जो इस प्रकार भोग और मोक्ष प्रदान करने वाले सर्वपापहारी एकादशी के उत्तम व्रत का पालन करता है, वह जाति का चाण्डाल होने पर भी संसार में सदा मेरा प्रिय रहता है। जो मनुष्य दीपदान, पलाश के पत्ते पर भोजन और व्रत करते हुए चौमासा व्यतीत करते हैं, वे मेरे लिए प्रिय हैं। चौमासे में भगवान विष्णु सोये रहते हैं, इसलिये मनुष्य को भूमि पर शयन करना चाहिये। सावन में साग, भादों में दही, कारमें दूध और कार्तिक में दाल का त्याग कर देना चाहिये ।
जो व्यक्ति चौमासा में ब्रह्मचर्य का पालन करता है, वह ह परम गति को प्राप्त होता है। राजन् ! एकादशी के व्रत से ही मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है; अतः सदा इसका व्रत करना चाहिए। कभी भी जानबूझकर इसे भूलना नहीं चाहिए । 'शयनी' और 'बोधिनी' के बीच में जो कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि आती है, वही गृहस्थों के लिए व्रत रखने योग्य हैं-अन्य मासों की कृष्ण पक्ष एकादशी गृहस्थ के रखने योग्य नहीं होती। शुक्ल पक्ष की एकादशी सभी गृहस्थजनों को करनी चाहिए।
देवशयनी एकादशी व्रत कथा (Devshayani Ekadashi Vrat Katha)-2
पौराणिक कथा के अनुसार मान्धाता नाम का एक सूर्यवंशी राजा था. वह सत्यवादी, महान तपस्वी और चक्रवर्ती था. वह अपनी प्रजा का पालन सन्तान की तरह करता था. एक बार उसके राज्य में अकाल पड़ गया. इसके कारण प्रजा में हाहाकार मच गया. प्रजा ने राजा से इस परेशानी से राहत पाने की गुहार लगाई. राजा मान्धाता भगवान की पूजा कर कुछ विशिष्ट व्यक्तियों को साथ लेकर वन को चल दिए. घूमते-घूमते वह ब्रह्मा जी के मानस पुत्र अंगिरा ऋषि (Agira Rishi) के आश्रम पर पहुंच गए.
राजा के राज्य में पड़ा अकाल
वहां राजा ने अंगिरा ऋषि से कहा कि मेरे राज्य में तीन वर्ष से वर्षा नहीं हो रही है. इससे अकाल पड़ गया है और प्रजा कष्ट भोग रही है. राजा के पापों के प्रभाव से ही प्रजा को कष्ट मिलता है, ऐसा शास्त्रों में लिखा है. मैं धर्मानुसार राज्य करता हूँ, फिर यह अकाल कैसे पड़ गया, आप कृपा कर मेरी इस समस्या के निवारण के लिए कोई उपाय बताएं.
इस दोष के कारण नहीं हुई वर्षा
अंगिर ऋषि बोले इस युग में केवल ब्राह्मणों को ही तप करने, वेद पढ़ने का अधिकार है, लेकिन राजा आपके राज्य में एक शूद्र तप कर रहा है. इसी दोष के कारण आपके राज्य में वर्षा नहीं हो रही है. अगर आप प्रजा का कल्याण चाहते हैं तो शीघ्र ही उस शूद्र का वध करवा दें. राजा मान्धाता ने कहा कि किसी निर्दोष मनुष्य की हत्या करना मेरे नियमों के विरुद्ध है आप और कोई दूसरा उपाय बताएं.
देवशयनी एकादशी व्रत से दूर हुई समस्या
ऋषि ने राजा से आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की देवशयनी नाम की एकादशी का विधानपूर्वक व्रत करने को कहा. वे बोले इस व्रत के प्रभाव से तुम्हारे राज्य में बारिश होगी और प्रजा भी पहले की तरह सुखी जीवन यापन कर पाएगी. राजा ने देवशयनी एकादशी का व्रत पूजन का नियम अनुसार पालन किया जिसके प्रताप से राज्य में फिर से खुशहाली लौट आई. कहते हैं मोक्ष की इच्छा रखने वाले मनुष्यों को इस एकादशी का व्रत करना चाहिए.
सूर्य के सम्मुख जो व्यक्ति गायत्री के मन्त्र का जाप करता है उसके नवग्रह धीरे-धीरे शांत होते जाते हैं और नवग्रहों के दोष भी दूर होते हैं। देवशयनी एकादशी के दिन भी आपको सूर्यदेव की स्तुति जरूर करनी चाहिए। गायत्री मंत्र का जाप व्यक्ति के आत्मविश्वास में वृद्धि करता है। उसके व्यवहार को सौम्य बनाता है और धर्म अर्थ, काम व मोक्ष प्रदान करता है।
प्रातःकाल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। भगवान विष्णु की प्रतिमा को गंगाजल से स्नान कराएं और पीले पुष्प अर्पित करें। व्रत कथा का श्रवण करें और विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें।
देवशयनी एकादशी पर जरूर करें कनकधारा स्तोत्र का पाठ
Kanakdhara Stotra: कनकधारा स्रोत संपूर्ण पाठ के लाभ और इसकी कथा जानें
कनकधारा स्तोत्र यानी स्वर्ण अर्थात धन की वर्षा करने वाला मंत्र और स्तोत्र जिसकी रचना भगवान शिव के अंशावतार आदिगुरु शंकराचार्य ने की थी।
कनकधारा स्तोत्र की कथा
एक बार शंकराचार्य भिक्षा मांगने के लिए घूमते घूमते हुए एक ब्राह्मण के घर पहुंचे। इतने तेजस्वी अतिथि को देखकर संकोच के मारे उस ब्राह्मण की पत्नी लज्जित हो गई। उसके पास भिक्षा देने के लिए कुछ था नहीं। उसे अपनी स्थिति पर रोना आ गया। नम आंखों के साथ उसने घर में रखें कुछ आंवला लिए और सूखे आंवले तपस्वी को भिक्षा में दे दिए। शंकराचार्यजी को उनकी यह दशा देखकर उन पर तरस आ गया। उन्होंने तुरंत ही ऐश्वर्य दायक, दशविध लक्ष्मी देने वाली, अधिष्ठात्री, करुणामयी, वात्सल्यमयी, नारायण पत्नी, महालक्ष्मी को संबोधित करते हुए एक स्तोत्र की रचना की। इस स्तोत्र के पाठ करने से वहां सोने की वर्षा होने लगी। इससे इस स्तोत्र का नाम कनकधारा स्तोत्र हुआ। कनक का मतलब सोना होता है। वर्षा के समान सोना बरसने ही यह स्तोत्र श्री कनकधारा स्तोत्र के नाम से प्रसिद्ध हुआ। प्रस्तुत है संपूर्ण कनकधारा स्तोत्र।
अंगहरे पुलकभूषण माश्रयन्ती भृगांगनैव मुकुलाभरणं तमालम।
अंगीकृताखिल विभूतिरपांगलीला मांगल्यदास्तु मम मंगलदेवताया:।।
माला दृशोर्मधुकर विमहोत्पले या सा मै श्रियं दिशतु सागर सम्भवाया:।।
ईषन्निषीदतु मयि क्षणमीक्षणार्द्धमिन्दोवरोदर सहोदरमिन्दिराय:।।
आमीलिताक्षमधिगम्य मुदा मुकुन्दमानन्दकन्दम निमेषमनंगतन्त्रम्।
आकेकर स्थित कनी निकपक्ष्म नेत्रं भूत्यै भवेन्मम भुजंगरायांगनाया:।।
बाह्यन्तरे मधुजित: श्रितकौस्तुभै या हारावलीव हरिनीलमयी विभाति।
कामप्रदा भगवतो पि कटाक्षमाला कल्याण भावहतु मे कमलालयाया:।।
कालाम्बुदालिललितोरसि कैटभारेर्धाराधरे स्फुरति या तडिदंगनेव्।
मातु: समस्त जगतां महनीय मूर्तिभद्राणि मे दिशतु भार्गवनन्दनाया:।।
प्राप्तं पदं प्रथमत: किल यत्प्रभावान्मांगल्य भाजि: मधुमायनि मन्मथेन।
मध्यापतेत दिह मन्थर मीक्षणार्द्ध मन्दालसं च मकरालयकन्यकाया:।।
दद्याद दयानुपवनो द्रविणाम्बुधाराम स्मिभकिंचन विहंग शिशौ विषण्ण।
दुष्कर्मधर्ममपनीय चिराय दूरं नारायण प्रणयिनी नयनाम्बुवाह:।।
इष्टा विशिष्टमतयो पि यथा ययार्द्रदृष्टया त्रिविष्टपपदं सुलभं लभंते।
दृष्टि: प्रहूष्टकमलोदर दीप्ति रिष्टां पुष्टि कृषीष्ट मम पुष्कर विष्टराया:।।
गीर्देवतैति गरुड़ध्वज भामिनीति शाकम्भरीति शशिशेखर वल्लभेति।
सृष्टि स्थिति प्रलय केलिषु संस्थितायै तस्यै नमस्त्रि भुवनैक गुरोस्तरूण्यै ।।
श्रुत्यै नमोस्तु शुभकर्मफल प्रसूत्यै रत्यै नमोस्तु रमणीय गुणार्णवायै।
शक्तयै नमोस्तु शतपात्र निकेतानायै पुष्टयै नमोस्तु पुरूषोत्तम वल्लभायै।।
नमोस्तु नालीक निभाननायै नमोस्तु दुग्धौदधि जन्म भूत्यै ।
नमोस्तु सोमामृत सोदरायै नमोस्तु नारायण वल्लभायै।।
सम्पतकराणि सकलेन्द्रिय नन्दानि साम्राज्यदान विभवानि सरोरूहाक्षि।
त्व द्वंदनानि दुरिता हरणाद्यतानि मामेव मातर निशं कलयन्तु नान्यम्।।
यत्कटाक्षसमुपासना विधि: सेवकस्य कलार्थ सम्पद:।
संतनोति वचनांगमानसंसत्वां मुरारिहृदयेश्वरीं भजे।।
सरसिजनिलये सरोज हस्ते धवलमांशुकगन्धमाल्यशोभे।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम्।।
दग्धिस्तिमि: कनकुंभमुखा व सृष्टिस्वर्वाहिनी विमलचारू जल प्लुतांगीम।
प्रातर्नमामि जगतां जननीमशेष लोकाधिनाथ गृहिणी ममृताब्धिपुत्रीम्।।
कमले कमलाक्षवल्लभे त्वं करुणापूरतरां गतैरपाड़ंगै:।
अवलोकय माम किंचनानां प्रथमं पात्रमकृत्रिमं दयाया : ।।
स्तुवन्ति ये स्तुतिभिर भूमिरन्वहं त्रयीमयीं त्रिभुवनमातरं रमाम्।
गुणाधिका गुरुतरभाग्यभागिनो भवन्ति ते बुधभाविताया:।।
देवशयनी एकादशी की शाम घर के बाहर दीपक जलाएं
देवशयनी एकादशी की पूजन विधि में दीप जलाना भी बहुत ही महत्वपूर्ण विधि है। आपको शाम के समय पूजा करन के बाद घर मुख्य दरवाजे के बार दीपक जरूर जलाना चाहिए। इससे घर से नकारात्मक ऊर्जा दूर हो जाती है और घर में देवी लक्ष्मी का वास बना रहता है। साथ ही इससे मन को शांति भी मिलती है।
गुलाबी रंग के आसन पर करें पूजा
पीले रंग की वस्तुओं का भोग लगाकर प्रसाद वितरित करें
सारांश:
आज का पंचांग और देवशयनी एकादशी का व्रत हमें आध्यात्मिक ऊंचाईयों की ओर ले जाता है। भगवान विष्णु की आराधना और व्रत का पालन हमारे जीवन में सुख, समृद्धि और शांति लाता है। ऐसे पावन अवसर पर हम सभी को भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त हो।