Karwa Chauth: A Celebration of Love and Devotion
Karwa Chauth is a Hindu festival celebrated primarily by married women in North India. It is a day dedicated to the well-being of husbands and is observed on the fourth day of the Hindu month of Kartik.अखंड सुहाग के लिए रखे जाने वाले करवा चौथ (Karwa Chauth) व्रत का बहुत अधिक महत्व है. करवा चौथ के दिन महिलाएं चांद निकलने तक व्रत (Varth) रखती हैं और पति की लंबी आयु के लिए सोलह श्रृंगार कर चंद्रदेव और करवे की पूजा करती हैं. हर वर्ष कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को करवा चौथ मनाया जाता है. आइए जानते है :
कब शुरू हुई करवा चौथ व्रत की परंपरा
कई प्राचीन कथाओं के अनुसार करवाचौथ की परंपरा देवताओं के समय से चली आ रही है। ऐसा माना जाता है कि एक बार देवताओं और दानवों में युद्ध शुरू हो गया और उस युद्ध में देवताओं की हार हो रही थी। ऐसे में देवता ब्रह्मदेव के पास गए और रक्षा की प्रार्थना की। ब्रह्मदेव ने कहा कि इस संकट से बचने के लिए सभी देवताओं की पत्नियों को अपने-अपने पतियों के लिए व्रत रखना चाहिए और सच्चे ह्रदय से उनकी विजय के लिए प्रार्थना करनी चाहिए। ब्रह्मदेव ने यह वचन दिया कि ऐसा करने पर निश्चित ही इस युद्ध में देवताओं की जीत होगी। ब्रह्मदेव के इस सुझाव को सभी देवताओं और उनकी पत्नियों ने खुशी-खुशी स्वीकार किया। ब्रह्मदेव के कहे अनुसार कार्तिक माह की चतुर्थी के दिन सभी देवताओं की पत्नियों ने व्रत रखा और अपने पतियों की विजय के लिए प्रार्थना की। उनकी यह प्रार्थना स्वीकार हुई और युद्ध में सभी देवताओं की जीत हुई। इस विजय के बाद सभी देव पत्नियों ने अपना व्रत खोला और खाना खाया। उस समय आकाश में चांद भी निकल आया था और तभी से चांद के पूजन के साथ करवा चौथ व्रत का आरंभ हुआ।
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महाभारत काल से जुड़ा है इतिहास
नित्य श्राद्ध कोई भी व्यक्ति अन्न, जल, दूध, कुशा, पुष्प व फल से प्रतिदिन श्राद्ध करके अपने पितरों को प्रसन्न कर सकता है।
कहा जाता है कि महाभारत काल में द्रौपदी ने भी करवा चौथ का व्रत रखा था। द्रौपदी द्वारा भी करवाचौथ का व्रत रखने की कहानी प्रचलित है। कहते हैं कि जब अर्जुन नीलगिरी की पहाड़ियों में घोर तपस्या लिए गए हुए थे तो बाकी चारों पांडवों को पीछे से अनेक गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था। द्रौपदी ने श्रीकृष्ण (भगवान श्रीकृष्ण से जुड़े कुछ सवाल )से मिलकर अपना दुख बताया और अपने पतियों के मान-सम्मान की रक्षा के लिए कोई उपाय पूछा। श्रीकृष्ण भगवान ने द्रोपदी को करवाचौथ व्रत रखने की सलाह दी थी, जिसे करने से अर्जुन भी सकुशल लौट आए और बाकी पांडवों के सम्मान की भी रक्षा हो सकी थी। तभी से इस व्रत को करने का चलन शुरू हुआ।
2024 करवा चौथ:
करवा चौथ रविवार, अक्टूबर 20, 2024 को करवा चौथ पूजा मुहूर्त — 05:46 पी एम से 07:02 पी एम अवधि — 01 घण्टा 16 मिनट्स करवा चौथ व्रत समय — 06:25 ए एम से 07:54 पी एम अवधि — 13 घण्टे 29 मिनट्स करवा चौथ के दिन चन्द्रोदय — 07:54 पी एम
Significance:
- Husband's Longevity: The primary significance of Karwa Chauth is to pray for the long life and well-being of one's husband.
- Love and Devotion: It is a festival that celebrates the love and devotion between a husband and wife.
- Fasting and Rituals: Married women observe a strict fast from dawn to dusk on this day, abstaining from food and water. They perform various rituals, including applying henna to their hands and wearing traditional attire.
- Moon Worship: The festival culminates in the worship of the moon, which is believed to represent the husband. Women offer prayers to the moon, seeking blessings for their husbands' long and healthy lives.
पूजा विधि (Karwa Chauth Puja Vidhi)
🐜करवा चौथ के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें और व्रत का संकल्प लें. पूरे दिन निर्जला व्रत रखें. पूजा की सामग्री एकत्र कर लें. मिट्टी से गौरी और गणेश बनाएं. माता गौरी को सुहाग की चीजें चूड़ी, बिंदी, चुनरी, सिंदूर अर्पित करें. करवा में गेहूं और उसके ढक्कन में चीनी का बूरा रखें. रोली से करवा पर स्वास्तिक बनाएं. शाम में गौरी और गणेश की पूजा करें और कथा सुनें. रात्रि में चंद्रमा को देख पति से आशीर्वाद लें और व्रत का पारण करें.
The Mantra to chant while taking the pledge —
मम सुखसौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये करक चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये।
The Mantra which should be recited during Parvati Puja is —
नमः शिवायै शर्वाण्यै सौभाग्यं संतति शुभाम्। प्रयच्छ भक्तियुक्तानां नारीणां हरवल्लभे॥
Mantra which should be chanted while donating Karwa —
करकं क्षीरसम्पूर्णा तोयपूर्णमथापि वा। ददामि रत्नसंयुक्तं चिरञ्जीवतु मे पतिः॥
महत्व और इतिहास
मान्यता है कि करवा चौथ का व्रत रखने के कारण माता पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाया था. यह व्रत महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और अखंड सुहाग के लिए रखती हैं.
Cultural Significance:
Karwa Chauth is a significant cultural event in North India, particularly in regions like Rajasthan, Punjab, and Uttar Pradesh. It is celebrated with great enthusiasm and fervor, often involving family gatherings, traditional meals, and gift-giving.
करवा चौथ पूजा सामग्री लिस्ट
🍂धकरवा और ढक्कन (मिट्टी या तांबा), छलनी, कांस की तीलियां, पानी का लोटा, मिठाई, दीपक, मिट्टी की पांच डेलियां, सिंदूर, अक्षत, रोली, मौल, कुमकुम, देसी घी,चावल, फूल, फल, चंदन, सुहाग का सामान (16 श्रृंगार का सामान), पका हुआ भोजन, हलवा, आठ पूरियों की अठावरी, कच्चा दूध, नारियल, पान, व्रत कथा की किताब, करवा माता की तस्वीर, ड्राई फ्रूट्स, कपूर, रूई की बाती, अगरबत्ती-धूप, हल्दी, दही, इत्यादि।
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क्या है करवा चौथ व्रत की पूरी कथा
🍃एक साहूकार हुआ करते थे, इनको सात पुत्र और एक पुत्री थी. पुत्री की शादी होने के बाद वह अपने ससुराल चली गई थी. सातों भाई अपनी बहन से काफी स्नेह रखते थे. एक बार करवा चौथ के दिन साहूकार के सभी बेटे अपनी बहन से मिलने उसके घर गये. जब वह अपनी बहन के घर पहुंचे तो उन्होंने देखा कि उसकी बहन निर्जला उपवास में है और उसने उसने पूरे दिन अन्न जल का ग्रहण नहीं किया है. उसने अपनी बहन से पानी-पीने के लिए कहा तो उसने कहा कि चांद निकलने के बाद ही वह पानी पी सकती है. भाई ने देखा आसमान में चांद नहीं निकला हुआ था. यह सब देखकर उसके छोटे भाई से रहा नहीं गया और उसने दूर एक पेड़ पर दीपक जलाकर चलनी की ओट में रख दिया. जिससे यह प्रतीत होने लगा कि चंद्रमा निकल आया है. उसके कहने पर उसकी बहन ने उसे चांद को देखकर व्रत खोल लिया. उसने जैसे ही अपना पहला निवाला मुंह में डाला, उसे छींक आ गई. जब उसने दूसरा निवाला अपने मुंह में डाला तो उसमें बाल निकल आया और तीसरा निवाला मुंह में डालते ही उसके पति की मृत्यु का समाचार उसे मिल गया. पति की मौत से वह काफी दुखी हो गई है और उसने निर्णय ले लिया कि वह अपने पति का अंतिम संस्कार ही नहीं करेगी.
एक साल तक अपने पति का शव लेकर बैठी रही
🍃उसने यह ठान लिया कि अपने सतीत्व से वह अपने पति को पुनर्जीवन दिलाकर ही रहेगी. इसके बाद वह एक साल तक अपने पति का शव लेकर वहीं बैठी रही तथा उसके ऊपर उगने वाली घास इकट्ठा करती रही. एक साल बाद करवा चौथ के दिन उसने चतुर्थी का व्रत किया और पूरे विधि-विधान से उसने निर्जला उपवास रखा.शाम को सुहागिनों से वह वही घास देकर अनुरोध करती रही कि घास लेकर उसे उसके पति की जान दे दे और उसे सुहागिन बना दे. उसके कठिन तपस्या और व्रत को देखकर भगवान के आशीर्वाद से उसका पति पुनः जीवित हो गया. ज्योतिषाचार्य ने बताया कि इस कथा को सुनने से जिस प्रकार साहूकार की बेटी का पति जिंदा हो गया. उसी तरह सभी महिलाओं का सुहाग सदा बरकरार रहता है.
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सम्बधित कथा-2
बहुत समय पहले इन्द्रप्रस्थपुर के एक शहर में वेदशर्मा नाम का एक ब्राह्मण रहता था। वेदशर्मा का विवाह लीलावती से हुआ था जिससे उसके सात महान पुत्र और वीरावती नाम की एक गुणवान पुत्री थी। क्योंकि सात भाईयों की वह केवल एक अकेली बहन थी जिसके कारण वह अपने माता-पिता के साथ-साथ अपने भाईयों की भी लाड़ली थी। जब वह विवाह के लायक हो गयी तब उसकी शादी एक उचित ब्राह्मण युवक से हुई। शादी के बाद वीरावती जब अपने माता-पिता के यहाँ थी तब उसने अपनी भाभियों के साथ पति की लम्बी आयु के लिए करवा चौथ का व्रत रखा। करवा चौथ के व्रत के दौरान वीरावती को भूख सहन नहीं हुई और कमजोरी के कारण वह मूर्छित होकर जमीन पर गिर गई। सभी भाईयों से उनकी प्यारी बहन की दयनीय स्थिति सहन नहीं हो पा रही थी। वे जानते थे वीरावती जो कि एक पतिव्रता नारी है चन्द्रमा के दर्शन किये बिना भोजन ग्रहण नहीं करेगी चाहे उसके प्राण ही क्यों ना निकल जायें। सभी भाईयों ने मिलकर एक योजना बनाई जिससे उनकी बहन भोजन ग्रहण कर ले। उनमें से एक भाई कुछ दूर वट के वृक्ष पर हाथ में छलनी और दीपक लेकर चढ़ गया। जब वीरावती मूर्छित अवस्था से जागी तो उसके बाकी सभी भाईयों ने उससे कहा कि चन्द्रोदय हो गया है और उसे छत पर चन्द्रमा के दर्शन कराने ले आये। वीरावती ने कुछ दूर वट के वृक्ष पर छलनी के पीछे दीपक को देख विश्वास कर लिया कि चन्द्रमा वृक्ष के पीछे निकल आया है।
अपनी भूख से व्याकुल वीरावती ने शीघ्र ही दीपक को चन्द्रमा समझ अर्घ अर्पण कर अपने व्रत को तोड़ा। वीरावती ने जब भोजन करना प्रारम्भ किया तो उसे अशुभ संकेत मिलने लगे। पहले कौर में उसे बाल मिला, दुसरें में उसे छींक आई और तीसरे कौर में उसे अपने ससुराल वालों से निमंत्रण मिला। पहली बार अपने ससुराल पहुँचने के बाद उसने अपने पति के मृत शरीर को पाया।
अपने पति के मृत शरीर को देखकर वीरावती रोने लगी और करवा चौथ के व्रत के दौरान अपनी किसी भूल के लिए खुद को दोषी ठहराने लगी। वह विलाप करने लगी। उसका विलाप सुनकर देवी इन्द्राणी जो कि इन्द्र देवता की पत्नी है, वीरावती को सान्त्वना देने के लिए पहुँची।
वीरावती ने देवी इन्द्राणी से पूछा कि करवा चौथ के दिन ही उसके पति की मृत्यु क्यों हुई और अपने पति को जीवित करने की वह देवी इन्द्राणी से विनती करने लगी। वीरावती का दुःख देखकर देवी इन्द्राणी ने उससे कहा कि उसने चन्द्रमा को अर्घ अर्पण किये बिना ही व्रत को तोड़ा था जिसके कारण उसके पति की असामयिक मृत्यु हो गई। देवी इन्द्राणी ने वीरावती को करवा चौथ के व्रत के साथ-साथ पूरे साल में हर माह की चौथ को व्रत करने की सलाह दी और उसे आश्वासित किया कि ऐसा करने से उसका पति जीवित लौट आएगा।
इसके बाद वीरावती सभी धार्मिक कृत्यों और मासिक उपवास को पूरे विश्वास के साथ करती। अन्त में उन सभी व्रतों से मिले पुण्य के कारण वीरावती को उसका पति पुनः प्राप्त हो गया।
गलती से टूट जाए करवा चौथ का व्रत तो ना हो परेशान? करें यह उपाय
🍃करवा चौथ के दौरान अगर गलती से कोई पानी पी लेती है या फिर ऐसा लगता है कि अब बिना पानी के नहीं रह पाएंगे और वह पानी पी लेती हैं, तो अगले वर्ष उस चीज को सुधार किया जा सकता है. वहीं उन्होंने बताया कि जो महिलाएं पहली बार व्रत कर रही हो वह निर्जला रहकर चांद का दीदार कर उनको अर्ध्य देकर अपने व्रत को करें.
करवा चौथ पर भूलकर भी न पहनें इस रंग के कपड़े
काला रंग करवा चौथ के दिन शादीशुदा महिलाओं को काले रंग के कपड़े नहीं पहनी चाहिए। यह रंग अशुभ और नकारात्मकता का प्रतीक माना जाता है। इसलिए हिन्दू धर्म में कोई भी शुभ कार्य या पूजा-पाठ करते समय काले रंग के कपड़े पहनने से मना किया जाता है। हालांकि मंगलसूत्र और काजल का प्रयोग कर सकते हैं, क्योंकि यह बुरी नजर से बचाता है। सफेद रंग हिन्दू धर्म में सुहागिनों के लिए सफेद रंग पहनना अशुभ माना जाता है। इसलिए करवा चौथ पर शादीशुदा महिलाओं को सफेद रंग के कपड़े कभी भी नहीं पहनने चाहिए। इसके साथ ही इस दिन सफेद रंग की चीजों जैसे दही, दूध, चावल या सफेद वस्त्र का दान नहीं करना चाहिए भूरा रंग करवा चौथ के दिन भूरे रंग के कपड़े पहनना अशुभ माना जाता है, क्योंकि यह रंग सेडनेस से भरा रंग माना जाता है। इसलिए सुहागिन महिलाओं को करवाचौथ पर इस रंग के कपड़े पहनने से बचना चाहिए। किस रंग की साड़ी पहनें? लाल रंग को सुहाग का प्रतीक माना गया है। ऐसा में अगर सुहागिन स्त्रियां लाल, मैरून , हरे रंग की साड़ी पहनती हैं, तो येह उनके लिए बेहद शुभ है। इस इंग के कपड़ो से भगवान भी प्रसन्न होते है।
करवाचौथ व्रत का फायदा
करवाचौथ का व्रत निर्जला होता है और इसका भी महत्व है. निर्जला उपवास करने से शरीर में नई ऊर्जा का प्रसार होता हैं तथा मनुष्य अपने शरीर पर नियंत्रण बना पाने में सक्षम होता हैं. ठंड की शुरुअता में अगर शरीर में जल का संतुलन सही रहे तो कई तरह की बीमारियों से मुक्ति मिलती है. एक तरह से निर्जला व्रत शरीर की शुद्धि होती है. शरीर में जमा सारा पानी यूरिन के जरिये बाहर आता है और जब जल ग्रहण किया जाता है तब नए जल शरीर में प्रवेश करते हैं. एक तरह से ये शरीर को डिटॉक्स करता है. इसलिए करवाचौथ का व्रत धार्मिक के साथ वैज्ञानिक महत्व भी रखता है. मौसम के बदलाव के कारण शरीर में धातुओं को संतुलित करने के लिए भी ये व्रत बहुत मायने रखता है.
Beyond the Rituals:
While the rituals and fasting are essential aspects of Karwa Chauth, the underlying message is one of love, devotion, and sacrifice. It is a celebration of the bond between a husband and wife, and a reminder of the importance of nurturing and cherishing these relationships.